Nithalle Ki Diary

Nithalle Ki Diary

1968

निठल्ले की डायरी हरिशंकर परसाई हिन्दी के अकेले ऐसे व्यंग्यकार रहे हैं जिन्होंने आनन्द को व्यंग्य का साध्य न बनने देने की सर्वाधिक सचेत कोशिश की । उनकी एक-एक पंक्ति एक सोद्देश्य टिप्पणी के रूप में अपना स्थान बनाती है । स्थितियों के भीतर छिपी विसंगतियों के प्रकटीकरण के लिए वे कई बार अतिरंजना का आश्रय लेते हैं, लेकिन, तो भी यथार्थ के ठोस सन्दर्भों की धमक हमें लगातार सुनाई पड़ती रहती है । लगातार हमें मालूम रहता है कि जो विद्रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, उस पर हमसे सिर्फ' 'दिल खोलकर' हँसने की नहीं, थोड़ा गम्भीर होकर सोचने की अपेक्षा की जा रही है । यही परसाई के पाठ की विशिष्टता है । निठल्ले की डायरी में भी उनके ऐसे ही व्यंग्य शामिल हैं । आडंबर, हिप्पोक्रेसी, दोमुँहापन और ढोंग यहाँ भी उनकी क'लम के निशाने पर हैं ।


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