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जैसा कि शीर्षक से इङ्गित है, यह पुस्तक डॉ. अम्बेडकर की रचना “शूद्र कौन थे” की समीक्षा व प्रत्युत्तर है। लेखक डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रतिपादित थीसिस को तथ्यों व प्रमाणों की कसौटी पर तौलने का प्रयास करता है तथा पुस्तक के दूसरे भाग में अपनी एण्टीथीसिस भी देता है।
यह पुस्तक सम्भवतः डॉ. अम्बेडकर की किसी रचना के समग्र अवलोकन व आलोचनात्मक समीक्षा के उद्देश्य से किया गया अपनी तरह का प्रथम प्रयास है, अतएव पाठक को एक एक नया परिप्रेक्ष्य देती है तथा और भी पठनीय बन पड़ती है।
दुर्भाग्यवश सम्पादन की अनेक त्रुटियाँ रह गयी हैं, जिन्हें आगामी संस्करण में प्रकाशक को अवश्य सुधारना चाहिए।